व्यसन करना केवल अपप्रवृत्ती नहीं है
व्यसन करना केवल अपप्रवृत्ती नहीं है. यह उससे कहीं अधिक विकृती है. वास्तव में, यह एक व्याधी है, जिसमें मन और शरीर दोनों ही अंकित हो जाते है. व्यसनाधीनता का व्यापक उदाहरण अर्थात मद्यप्राशन है, किन्तु अन्य कई ऐसे व्यसन है, जो दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं. व्यसनाधीनता क्यों बढ़ रही है ? जैसा कि कुछ लोग सोचते हैं वैसे व्यसनाधीनता अर्वाचीन नही हैं. उस के उदाहरण प्राचीन ग्रंथों मेँ भी मिलते हैं. किन्तु व्यसनाधीन हुए लोगों की संख्या तथा उस के बढ़ने का प्रतिशत चिंतनीय है. प्राचीन काल मेँ भी…
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