व्यसनाधीनता
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व्यसन करना केवल अपप्रवृत्ती नहीं है

व्यसन करना केवल अपप्रवृत्ती नहीं है. यह उससे कहीं अधिक विकृती है. वास्तव में, यह एक व्याधी है, जिसमें मन और शरीर दोनों ही अंकित हो जाते है. व्यसनाधीनता का व्यापक उदाहरण अर्थात मद्यप्राशन है, किन्तु अन्य कई ऐसे व्यसन है, जो दिन-ब-दिन बढ़ रहे हैं.

व्यसनाधीनता क्यों बढ़ रही  है ?

जैसा कि कुछ लोग सोचते हैं वैसे व्यसनाधीनता अर्वाचीन नही हैं. उस के उदाहरण प्राचीन ग्रंथों मेँ भी मिलते हैं. किन्तु व्यसनाधीन हुए  लोगों  की संख्या तथा उस के बढ़ने का प्रतिशत चिंतनीय है.

प्राचीन काल मेँ भी व्यसनाधीन पे कुछ प्रतिबंध थे, दंड भी था. परंतु यह कारण उतना महत्व नहीं रखता. उस समय अधिकांश समाज श्रमजीवी हुआ करता था, बेरोजगार लोगों की संख्या कम थी. अब आर्थिक आय में वृद्धि के साथ, प्रति व्यक्ति निर्वाह दर में वृद्धि हुई है. जिस के कारण आर्थिक स्तर के नीचले वर्ग मेँ  धन का व्यय भी बढ़ रहा है. इस के कारण व्यसनाधीनता व्यक्तिगत स्तर पे अधिक सुलभ होती गयी.     

जैसे-जैसे व्यसन या व्यसनाधीनता अधिक व्यक्तिगत होती गयी, उस को नियंत्रित करना अधिक दुष्कर होता गया. कई परिवारों में यह जानने के लिए बहुत देर हो चुकी है या हो जाती है, कि उन के परिवार का कोई सदस्य व्यसनाधीन हो गया है.  

व्यसन-व्यापार में प्राप्त होनेवाला धन एक प्रमुख मुद्दा है

कुछ लोग व्यसनाधीनता का दृढ़ता से विरोध करते हैं, परंतु हम व्यापक-स्तर पे सोचें तो इस विरोध से प्राप्त होनेवाली सफलता बहुत ही कम है. अनगिनत परिवार इसके कारण पीड़ित है तथापि, यह एक कड़वा तथ्य है कि अधिकांश सरकारें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में व्यसन से वित्तीय आय प्राप्त करती हैं. यह दुख की बात है कि कई देश ऐसे भी हैं जिनकी अर्थव्यवस्था व्यसन-व्यापार पर निर्भर है.

कई समाजविघातक शक्तियां, व्यसन-व्यापार में प्रमुख लाभार्थी हैं. कई आतंकवादी आंदोलन भी इसीसे प्राप्त धन पर निर्भर हैं. यह कई देशों का अनुभव है कि व्यसन को रोकने के लिए कोई भी योजना बीच में ही भटक जाती है. 

व्यसन केवल व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है

व्यसन केवल व्यक्तिगत स्तर की एक समस्या नहीं है. कई देश इस समस्या से त्रस्त हैं. गाँव में भी, ड्रग लॉर्ड्स के साम्राज्य तथा राजनीति में उनके प्रभुत्व का  अनुभव हम करते आये हैं.

एक व्यक्ति व्यसनों को क्यों अपनाता है?

इसके लिए कई कारण हैं. धन, हानि, स्वभाव, दुःख, निराशा, शून्यता, जीवन के प्रति दृष्टिकोण, साहचर्य आदि इसके कई कारण हैं. परंतु अंतिमत: महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि व्यसनाधीनता के मार्ग तुलना मेँ सहजता से तथा सस्ते दाम पर उपलब्ध हैं.

व्यसनाधीनता मानसिक व्याधि है. इस का आरंभ केवल एक मजाक या आग्रह के रूप में होता है. अंततः व्यक्ति पूरी तरह से उस पदार्थ पर निर्भर हो जाता है. यदि प्रासंगिक पदार्थ नहीं मिला है, तो व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से पीड़ित होता है 

और भी कारण हैं

लंबे समय तक व्यसन करने से भी मानसिक परिवर्तन होते हैं. व्यसनाधीनता  हर आर्थिक स्तर में है. नव संपन्न वर्ग में वो संपन्नता का प्रतीक बन गई है.

व्यसनाधीनता कुछ प्रतिशत आनुवंशिक भी है. अर्थात कुछ लोगों में व्यसनाधीनता  की प्रवृत्ति अधिक होती हैं. उन के लिए इस से छुटकारा पाना कोई आसान बात नहीं होती है. दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ, परिवारजनों का समर्थन, उचित उपचार लेना हमेशा उपयुक्त होता है.     

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